अखिल भारतीय आयुर्वेदिक पारद एवं जड़ी बूटी अनुसंधान सम्मेलन तहसील बरेली जिला रायसेन मध्यप्रदेश में पारे का शोधन एवं संस्कार नामक कार्यशाला का शुभारंभ हुआ. 27 जून से डॉ विज्ञानदं स्वामी के दिशा निर्देशन में प्रारंभ हुई इस संस्कार कार्यशाला पर अपनी विस्तृत जानकारी देते हुए डॉ स्वामी ने बताया कि दुनिया के बहुत सारे देशों ने पारे के उपयोग पर रोक लगा रखी है उन देशों द्वारा यह कहा जाता है कि पारा विश है आयुर्वेदिक ने तो हजारों वर्ष पूर्व ही कह दिया था कि पारा विश हें और इसे इसके मूल खनिजीय रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता क्योंकि इसके अंदर उपस्थित विभिन्न प्रकार की अशुद्धियां मानव शरीर के लिए हानिकारक हैं इसलिए पारे का शोधन और संस्कार किया जाता है स्वामी जी ने आगे बताया कि पारे की सृजन ओर संस्कार करके इसी पारे को जैविक पारे के रूप में रूपांतरित किया जाता है और इसका उपयोग मानव शरीर को आरोग्य प्रदान करने के लिए किया जाता है स्वामी जी ने कहा कि जिस तरह पारा अपने मूल खनिजीय रूप में मानव शरीर के लिए हानिकारक है इसके विपरीत शोधित एवं संस्कारित पारा मानव शरीर के लिए अमृत है क्योंकि इसे शोधित एवं संस्कार पारे से तैयार की गई, आयुर्वेदिक औषधियां आशु कारी एवं चमत्कारिक परिणाम देने वाली होती है डॉ स्वामी ने बाहर से आए हुए आयुर्वेदिक डॉक्टरों के साथ अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि इस पारे से निर्मित बहुत सारी औषधि ऐसी हैं जिन्हें कई जटिल रोगों में चमत्कारिक परिणाम दिए हैं।