हार से निराश, अब महल छोड़ेंगे ‘महाराज सिं​धिया’

ज्योतिरादित्य सिंधिया अब से पहले कब ऐसे नजर आए थे. चुनाव से पहले न जाने कितनी ही रैलियां हुईं. सभाएं हुईं लेकिन सिंधिया हमेशा मुस्कुराते हुए ही नजर आए. क्षेत्र में जब भी निकले महाराजाओं से ठाठ बाट के साथ निकले. लेकिन मोदी की आंधी में सिंधिया अपना गढ़ नहीं बचा पाए. इस हार के बाद पार्टी में साख भी कमजोर हो गई लगती है. लिहाजा अब सिंधिया के सामने कोई और चारा नहीं है. पार्टी में दमखम बनाए रखना है तो सिंधिया के लिए महल छोड़ना मजबूरी हो गया है. अब अगर ये राजसी ठसक नहीं छोड़ी तो क्षेत्र की गद्दी तो पहले ही गंवा चुके हैं महल की शानौशौकत भी गंवानी पड़ सकती है. ये बात अब ग्वालियर चंबल के महाराज समझ चुके हैं. और ये भी समझ गए हैं कि दोबारा वापसी करना है तो महल छोड़ना होगा. क्षेत्र की जनता से मिलना. कार्यकर्ताओं के से मिलना और तुफानी दौरे करना. ये इससे पहले सिंधिया का मिजाज कहां था. महाराज तो सिर्फ हुक्म करते थे. जिसकी तामील फोरन हो जाती थी. क्षेत्र की जनता भी खुश थी. लेकिन मोधी की आंधी में सिंहासन क्या डोला न पार्टी आलाकमान के दरबार में सुनवाई हो रही है न जनता झुक कर सलाम ठोंक रही है. लिहाजा महाराजाओं वाली ठसक भी पीछे रह गई है. अब क्षेत्र में लौट कर भी सिंधिया महलों वाली सियासत नहीं कर रहे. बल्कि जनता के बीच जा रहे हैं सुख दुख सुन रहे हैं. रोज मुद्दे उठा रहे हैं और हल भी बता रहे हैं. साफ है सिंधिया समझ चुके हैं कि राजशाही नहीं छोड़ी तो लोकशाही भी जल्द ही हाथ से निकल जाएगी.

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