भोपाल में आज फिर कोरोना के नए मामले सामने आए. लेकिन भोपाल के लोग इन बढ़ते आंकड़ों से ज्याद विशाखापट्टनम में हुई घटना से परेशान हैं. मीलों दूर एक फैक्ट्री से गैस रिसी और भोपाल के जख्म हरे हो गए. 2 और 3 दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात. यही तो पहचान है उस काली रात और काले दिन की. जो भोपाल को कभी न खत्म होने वाला दर्द देकर गया था. उस रात भोपाल की एक फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसायनेट नाम की गैस रिसी थी. मौत की गिनती शुरू हुई. एक, सौ, हजार, दो हजार, तीन हजार और फिर बढ़ती ही चली गई. उस गैस के बेरहम पंजो की गिरफ्त में भोपाल का एक बड़ा हिस्सा आज भी है. आज जब सुबह विशाखापट्टनम की फैक्ट्री से जहरीली गैस रिसाव की खबर मिली तो भोपालभर की जुबान पर एक ही दुआ थी कि भगवान फिर वो गैस कांड न दोहराना. जब जान बचाने को मासूम बेतहाशा भागते रहे. जान की परवाह इस कदर हो जाए कि अपने अपनों की ही फिक्र न रहे. बस जिंदा बच जाने का ऐतबार हो जाए. आज उसी राह पर विशाखापट्टनम आ खड़ा हुआ है. जब लोगों के घर छूट रहे हैं. फैक्ट्री के आसपास के बीस गांव खाली करवाए जा चुके हैं. उस वक्त मिक थी जिसने कहर ढाया. आज स्टायरीन है जो मौत बन कर मंडरा रही है. असर दोनों का एक सा ही है. शायद इसलिए गैस रिसी विशाखापट्टनम में और ट्वीटर पर ट्रेंड करने लगा भोपाल गैस ट्रैजिडी. पर उम्मीद है कि वाइजेग गैस कांड भोपाल सा भयावह नहीं होगा. तब से अब तक की तकनीक और तेजी दोनों में अंतर है. जिस तेजी से बचाव कार्य शुरू हुए हैं उसे देखते हुए उम्मीद है कि विशाखापट्टनम का जख्म भोपाल सा गहरा नहीं होगा.