आलाकमान के हाथों फाइनल हो कर आने वाली सूची कुछ खास अच्छी खबर नहीं लाने वाली है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जो बात कही है उसे सुनकर तो यही लगता है कि बाकी किसी और कि तो नहीं लेकिन शिवराज सिंह चौहान की मुश्किलें जरूर बढ़ने वाली हैं. चेहरे पर मुस्कान है पर माथे पर भी तनाव की लकीरें खिंची हुई हैं. वैसे भी ये मंत्रिमंडल शिवराज के लिए किसी समुद्र मंथन से कम नहीं है. जिसकी गहराइयों में पार्टी के सूरमा बैठे हुए हैं. कुछ नए कुछ पुराने. जिनके पास अमृत कम है और विष ज्यादा. लिहाजा मंथन पर सवाल हुआ तो शिवराज ने कह ही दिया कि विष तो शिव के हिस्से ही आता है.
बाइट- विष तो शिव पीते हैं. दो तीन बार रिपीट
अब बात मंत्रिमंडल की है और मामला विष पर जाकर खत्म हो जाए तो बात कुछ खटकना लाजमी ही है. वैसे चौथी बार सत्ता मिल जाए तो विष में भी हर्ज ही क्या है. जिसे पीने के लिए शिवराज हंसते हंसते तैयार है. बस ऐसा न हो कि विष उनकी झोली में आए और उपचुनाव में जीत का अमृत कांग्रेस के हाथ लग जाए. इसलिए जरूरी है कि शिव विष ग्रहण करें तो पार्टी के पुराने नेता भी सब्र का घूंट पिएं ताकि मंत्रिमंडल में अनदेखी का विष न सही कम से कम कड़वा काढ़ा तो हजम कर ही सकें.
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