कुर्सी के किस्से बस यूं ही दिलचस्प नहीं बन जाते. महाराष्ट्र में जो सियासी घटनाक्रम इतने दिलचस्प तरीके से चल रहे हैं उसे देखकर अंदाजा लगाया ही जा सकता है कि किस्सा ए कुर्सी हर बार क्यों इतने दिलचस्प लगते हैं. एक कुर्सी की खातिर शिवसेना ने तीन दशक पुराने गठबंधन की गठान खोलने से गुरेज नहीं किया. कुछ क्षणों के लिए तो ये भी लगा कि शिवसेना और कांग्रेस दोनों ही अपने सिद्धांतों से समझौता भी कर लेंगी. हालांकि बाद में कांग्रेस को पुरानी पार्टी लाइन याद आ ही गई. फिलहाल महाराष्ट्र पर पूरे देश की नजरें टिकी हैं. खासतौर से राजनेता इस पूरे घटनाक्रम में नजर बनाए रखे हैं. बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार भी महाराष्ट्र की पल पल की खबर रख रहे हैं. उनकी पार्टी भी एनडीए के घटक दलों में से एक है. इसलिए गठबंधन में टूट से उनका प्रभावित होना लाजमी है. पर इस सवाल पर उनका जवाब टका सा है. महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य पर वो कहते हैं वो जाने भाई इसमें हमको क्या मतलब है? अब मतलब तो है ये तो सब जानते हैं और ये भी कि नई कॉन्ट्रोवर्सी से बचने के लिए नितीश कुमार ने शांत रहना ही मुनासिब समझा है.