Swami Vivekanand की diary का अंश, वेश्या से मिला ये ज्ञान

युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत स्वामी विवेकानंद को जिस जिस से मौका मिल उस शख्स से उन्होंने ज्ञान हासिल किया है. ऐसा ही एक दिलचस्प वाक्या खुद स्वामीजी ने बताया है. जहां उन्हें एक वेश्या की बातों से अहसास हुआ कि दरअसल संन्यास क्या होता है. घटना कुछ ऐसी है कि स्वामीजी अमेरिका जाने से पहले एख महाराज के महल में रुके. स्वामीजी के स्वागत के लिए राजमहल में वेश्याएं बुलाई गईं. लेकिन स्वामीजी का स्वभाव अलग था इस तरह के स्वागत सत्कार से बचने लिए विवेकानंद ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया. उस वक्त महाराज को तो अपनी गलती का अहसास हो गया लेकिन वेश्याओं को यूं भेजना संभव नहीं था. महाराज स्वामी विवेकानंद को समझाते रहे. पर उन्होंने दरवाजा नहीं खोला. इस बीच वेश्या ने ही गीत गाना शुरू कर दिया. जिसकी चार लाइन सुनते ही स्वामीजी दरवाजा खोलकर बाहर आने पर मजबूर हो गए. इस गीत का अर्थ कुछ ऐसा था- मुझे मालूम है कि मैं तुम्हारे योग्य नहीं, फिर भी तुम करूणा कर सकते थे. मैं राह की धूल सही, लेकिन तुम्हें तो मेरे प्रति इतना विरोध नहीं होना चाहिए. मैं अज्ञानी और पापी हूं, पर तुम तो पवित्र आत्मा हो, फिर क्यों मुझसे भयभीत हो तुम. वेश्या के मुंह से ये करूण गीत सुनकर स्वामीजी को अपनी भूल का अहसास हुआ. इस घटना का जिक्र स्वामीजी ने अपनी डायरी में किया है. और लिखा है कि इस घटना के बाद उन्हें नया प्रकाश मिला. इस घटना के बाद मुझे तटस्थ रहने का ज्ञान मिला. उनके अनुसार कमजोर सोच वाले ही दूसरों के बारे में पहले से नजरिया तय करते हैं और उस अनुसार बर्ताव करते हैं.

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