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कहते हैं शेर कितना भी बूढ़ा हो जाए पंजे मारना नहीं भूलता. और फिर राजनीति में तो 67 साल कोई उम्र ही नहीं होती है जिसे बूढ़ा कहा जाए. गोपाल भार्गव भी 70 के नजदीक हैं लेकिन ये उम्र ढलने की नहीं बल्कि सियासी तजुर्बे वाली है. जिसके चलते भार्गव ने एक बार फिर साबित कर दिया कि उन्होंने कोई कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं. उन्हें नजरअंदाज करना सिर्फ पार्टी के नेताओं को ही नहीं हर उस व्यक्ति को भारी पड़ सकता है जो ये समझ रहे हैं कि भार्गव के दिन तो लद गए. ऐसे ही गलती अब तक कर रहीं थीं सागर कलेक्टर प्रीति मैथिल. या यूं कहें सागर की कलेक्टर रहीं प्रीति मैथिल. रहीं इसलिए कहा क्योंकि अब वो सागर की कलेक्टर रही नहीं, अब वो भोपाल तलब कर ली गई हैं, बतौर उपसचिव, किसान कल्याण और कृषि विभाग. उनकी जगह 2007 बैच के आईएएस ऑफिसर दीपक सिंह सागर की कमान संभालेंगे. अब कोई माने या न माने सागर में ये फेरबदल है सिर्फ गोपाल भार्गव की एक शिकायत पर. वो भी उन्होंने सीधे नहीं की बड़ी चतुराई से खबर अखबार में छपवाई और अपनी बेबसी जाहिर कर दी कि कलेक्टर ने कभी उनसे संपर्क नहीं किया. बस इतना कहना ही काफी था. सियासी गलियारों में हड़कंप मच गया. पता नहीं कैसी कैसी खबरें आईं, विरोधियों ने तो ये तक कह दिया कि बस भार्गव का काम खत्म. पर नहीं बुंदेलखंड के इस माटीपकड़ राजनेता ने दिखा दिया कि यूं ही उन्हें हाशिए पर खड़ा करना कोई आसान काम नहीं है.