गलवान घाटी में धोखे से भारत की सेना पर हमला करना और फिर मुंह की खाकर लौटे चीन ने गलवान घाटी को अपनी संप्रभुता का हिस्सा बताया है. ऐसा कहते समय चीन शायद ये भूल गया कि इतिहास में ऐसे कई किस्से दर्ज हैं जो साबित करते हैं कि लद्दाख की गलवान घाटी भारत की ही है. इस घाटी को अपने नाम से नवाजने वाले गुलाम रसूल गलवान का परिवार आज भी लद्दाख की वादियों में ही रहता है. गलवान वैली की ये कहानी शुरू होती है साल 1878 से. जिस वक्त हिंदुस्तान पर अंग्रेजों का राज था. एक अंग्रेजी अखबार इकॉनॉमिक टाइम्स ने रसूल बैले के हवाले से गलवान की ये पूरी कहानी बताई है. रसूल बैले गुलाम रसूल गलवान के परिवार से ही हैं. गुलाम रसूल उस दौर में अंग्रेजों के लिए काम करते थे. गलवान ने मेडर गॉडविन ऑस्टिन के साथ बर्फीले पहाड़ों के कई इलाके खोजे. माउंट गॉडविन ऑस्टिन का नाम उन्हीं के नाम पर पड़ा. और उनके साथ रहने वाले गलवान की पूरी कौम के नाम से गलवान घाटी प्रसिद्ध हो गई. गलवान वो लोग थे जो राजा महाराजाओं के घोड़ों की देखभाल करते थे. उन्हीं के नाम पर घाटी का नाम पड़ा. दरअसल गुलाम रसूल गलवान ने एक किताब भी लिखी थी जिसका नाम है सर्वेंट ऑफ साहिब्स. अपनी टूटी फूटी अंग्रेजी में गलवान ने इसमें कई जगह की यात्रा का जिक्र किया है. जिसमें गलवान का जिक्र भी मिलता है. किताब में बताया गया है कि उस वक्त गलवान राजा महाराजाओं के घोड़ो की देखभाल करते करते घोड़े चुराने भी लगे थे. जिसकी वजह से गलवान घाटी बदनाम भी हुई. इस घाटी को अच्छी बुरी जैसी भी पहचान देने वालों का रिश्ता भारत से ही रहा है. और अब भी है. इसलिए गलवान पर अधिकार जमाने से पहले चीन को भी इस इतिहास को खंगालना बहुत जरूरी है.
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