अगर कहा जाए कि मध्यप्रदेश में भाजपा की सबसे बड़ी महत्वाकांक्षाओं में छिंदवाड़ा लोकसभा सीट जीतना भी एक है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। एक बार को छोड़ दिया जाए तो पिछले 37 सालों में भाजपा यहां से कैंडिडेट बदल-बदल कर जीतने की नाकाम कोशिश कर रही है। हालांकि 1996 के बाद हुए उपचुनाव में सुंदरलाल पटवा यहां से जीत चुके हैं। 1980 से छिंदवाड़ा सीट से सांसद बनते आ रहे कमलनाथ इस बार लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ रहे हैं और कांग्रेस की जीत इस बात पर भी निर्भर करेगी कि वह यहां से किसे अपना उम्मीदवार बनाती है। हालांकि विधानसभा चुनावों में सातों सीट जीतकर कांग्रेस अभी बहुत ही मजबूत स्थिति में है। छिंदवाड़ा सीटों पर वोटों के गणित की बात करें तो
छिंदवाड़ा विधानसभा में सीटों का गणित
चुनाव कांग्रेस भाजपा
2013 विधानसभा चुनाव 434869 (3 सीट) 489472 (4 सीट)
2014 लोकसभा चुनाव 559755 443218
2018 विधानसभा चुनाव 579662 (7 सीट) 456105 (कोई सीट नहीं)
कमलनाथ के प्लस पॉइंट
1. सदन से क्षेत्र तक सक्रियता- ग्रामीण इलाकों तक में जनता से जुड़ाव
2. छिंदवाड़ा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान- छिंदवाड़ा मॉडल फेमस
3. इलाके में अधोसंरचना विकास के काम- सड़क और अन्य विकास के काम
4. जिले में युवाओं को रोजगार दिलाने के लिए राष्ट्रीय स्तर के लिए कई संस्थान लाए
5. छिंदवाड़ा को ट्रेनों की सौगात- रेल लाइन के जरिए देश के कई भागों से जोड़ने में प्रमुख भूमिका
कमलनाथ के माइनस पॉइंट
1. छिंदवाड़ा को संभाग बनाने की घोषणा अभी तक पूरी नहीं
2. जिले में छोटे-मोटे उद्योगों और ट्रेनिंग सेंटर्स के अलावा कोई बहुत बड़ा उद्योग नहीं लगा
3. जिले में यूनिवर्सिटी बनाने की मांग अभी तक पूरी नहीं हुई
4. स्वास्थ्य के क्षेत्र में छिंदवाड़ा अभी भी नागपुर पर निर्भर है, छोटी-मोटी बीमारी के लिए लोग नागपुर जाते हैं
5. कोयला खदानों के बंद होने के बाद रोजगार के नए अवसर खोजने में कमी
छिंदवाड़ा सांसद कमलनाथ अब मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए हैं। और वो लोकसभा के बजाय विधानसभा चुनाव लड़ेंगे और भाजपा इस बार छिंदवाड़ा सीट पर हार का मिथक तोड़ने की पूरी कोशिश में जुटी है।